Sunday, November 21, 2010

dreadful longing of the day....



How would he know of the hopeless dark;
who was born immersed in candescent light;

He who closed his eyes not;
nor wandered out, ever at night;

And favored by thy mighty grace;
who spent his days of mirth and might;

Tonight shall be stormy, and her wisdom lamp is dead ;
And none can share her plight as me, the darkest times of fret.

Saturday, November 13, 2010

प्रकृति का वास्तविक स्वरुप


नदियां, पंछी, बादल और धुप

प्रकृति का अनुपम मोहक स्वरुप

कल-कल करता वह जल-प्रपात

भय प्रेरित करता मेघ नाद

तितली का संदीप्त मनमोहक नृत्य

वह देखो भ्रमर का उद्धरण कृत्य

सबमे है वह अलौकिक ओज प्रधान

वह प्राण संचारक तत्व समान

है सर्व प्रथक है सर्व विलीन

संसार सकल जिसके आधीन

कर अक्षय अर्पित सर्वस्व उस पर

तुम कार्य करो उत्तम पथ पर

वसुधैव कुटुम्बकम लो अब भी मान

देखो कण कण में बसते राम

आज की आपबीती




मन में पुलकित नव विचार हैं

क्षीण हो रहे सब विकार हैं

नव प्रेरणा का उदयघोष है

मन मद स्फुटित नव आक्रोष है

आशा अभिलाषा विसार है

आह्लादित होता रक्त संचार है

मन में दृढसंकल्प प्रगाढ़ है

तुच्छ प्रत्याक्ष सीमा विसार है

हरि कृपा से प्रेरित पोषित, सरल सिद्ध सब जटिल कार्य हैं

सरल सिद्ध सब जटिल कार्य हैं

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